Suitcase mein zindagi: travelogue (सूटकेस में जिन्दगी: यात्रा-वृत्तान्त)
Material type:
- 9789388211390
- H 891.433 D9S8
Item type | Current library | Item location | Collection | Shelving location | Call number | Status | Notes | Date due | Barcode | |
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Hindi Books | Vikram Sarabhai Library | Non-fiction | Hindi | H 891.433 D9S8 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 207703 |
कहने को तो 'सूटकेस में जिन्दगी' यात्रा संस्मरण है, जीवन में आये छोटे बड़े पड़ावों, चीजों, जगहों और प्यार भरे लोगों के ' 'जीवन का यह एक छोटा सा इतिहास' ' भी है । इस यात्रा में गाँव-कस्बे हैं, छोटे-छोटे शहर आत्मीयता से मौजूद हैं । लखनऊ, इलाहाबाद, काशी, अयोध्या भी है । आगरा, ग्वालियर और भिंड भी । मुरादाबाद, नैनीताल और अल्मोड़ा के होने की अपनी वजहें भी हैं । दिल्ली है, जहाँ सब कुछ जा कर खो जाता है । लेकिन लेखक का मन ज्यादा रमता है अंतरंग इलाहाबाद में, जो न सिर्फ पचास सालों से ज्यादा भारतीय राजनीति के केन्द्र में रहा है, औसत उत्तर भारतीय युवा की आशा- निराशा का भी केन्द्र रहा है । जहाँ संगम है, कुम्भ है । एक छात्रावासी का सोना-जागना है, विश्वविद्यालय की धड़कने सी पड़ रही हैं । इस यात्रा में जीवन रूढ़ियाँ हैं, घिसी-पिटी परम्पराओं पर चोटें हैं और वह भी एक अजब खिलंदड़ेपन के साथ; इस दौरान परिवेश को अपनी पैनी नजर से टटोलने की भी प्रक्रिया चलती रहती है और इसी बहाने लेखक की खुद की बनावट-बुनावट का उसके अपने बनने की प्रक्रिया का भी पता चलता है । आपबीती- जगबीती का जो वृत्तांत यहाँ है, उसकी पृष्टभूमि में है वह दुनियां, जिसमें हम जी रहे हैं । जिन विकट मुश्किलों में हम घिरे हुये हैं । इसके साथ ही, यथास्थिति को बनाये रखने, बदलाव की प्रक्रिया को धीमा करने जैसी साजिशों की पड़ताल भी चलती रहती है । हेमन्त द्विवेदी का मन कविता में ज्यादा रमता है । इसकी छापें यहाँ भी हैं और जो बात कहने की नहीं है वह यह कि सारी आसानियों-दुश्वारियों के बाद भी रहना इसी दुनिया में है । ' 'मुझे तुम्हारा स्वर्ग नहीं चाहिये । मैं मनुष्य हो गया हूँ और धरती पर रहना चाहता हूँ ।
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