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Bhartiya Ekta (भारतीय एकता)

By: Material type: TextTextPublication details: Lokbharti Prakashan 2019 DelhiDescription: 88 pISBN:
  • 9789388211970
Subject(s): Summary: राष्ट्रीय एकता का प्रश्न स्वतंत्रता के बाद भी हमारे सामने ज्वलन्त रूप में था और आज भी वैसा ही बना हुआ है। ऐसे में राष्ट्रकवि दिनकर की यह पुस्तक हमारे लिए एक मार्गदशर्क की भूमिका निभा सकती है। गौरतलब है कि वर्ण, धर्म, रंगभेद, वर्ग आदि के आधार पर युगों से चली आ रही जो असमानता और बिखराव आज पूँजीवादी युग में अपने विभिन्न रूपों में विभिन्न स्तरों पर व्याप्त है, वह किसी भी राष्ट्र, समाज, उसकी संस्कृति के लिए खतरनाक है। तब तो और, जब सत्ता और राजनीति के बीच फासिज्म नवराष्ट्रवाद के नाम पर एक वाचाल और निरंकुश भूमिका में आ गया हो। ऐसे में दिनकर की यह चिन्ता कितनी वाजिब है कि 'एकता का सारा काम केवल राजनीति के मंच से किया जाए, यह यथेष्ट नहीं है। हमें कॉलेजों, स्कूलों और पुस्तकालयों में ऐसा साहित्य भी पहुँचाना चाहिए, जिसमें एकता के प्रश्न पर गहराई से विचार किया गया हो।' 'भारतीय एकता' पुस्तक में जो दो निबन्ध–‘उत्तर-दक्षिण की एकता’ और ‘हिन्दू मुस्लिम एकता’ संगृहीत हैं, जो राष्ट्रकवि दिनकर के चार भाषणों से तैयार हुए हैं। इनमें इतिहास के प्रमाण कम, साहित्य के प्रमाण अधिक दिए गए हैं। मगर साहित्य के प्रमाण भी अन्ततोगत्वा इतिहास के ही प्रमाण होते हैं, क्योंकि इतिहास का सार साहित्य में, आप-से-आप, पहुँच जाता है। दिनकर की इस पुस्तक में मूल चिन्तन यह है कि ‘जो लोग वैविध्य को अनेकता मानते हैं और वैविध्य को मिटाकर एकता लाना चाहते हैं, वे कभी भी सफल नहीं होंगे। विविधता भारत का स्वभाव है। उसकी रक्षा करते हुए जो एकता हम ला सकेंगे, वही टिकाऊ होगी और वही काम्य भी है।’ भारत को खुसरो ने पृथ्वी का स्वर्ग माना है...। भारत के सामने खुसरो ने बसरा, तुर्की, रूस, चीन, खुरासान, समरकंद, मिस्र और कन्धार--सबको तुच्छ बताया है । फिर खुसरो ने यह भी लिखा है कि कोई मुझसे पूछ सकता है कि तू मुसलमान होकर हिन्दुस्तान की बड़ाई क्यों करता है । मेरा जवाब यह होगा कि इसलिए कि हिंदुस्तान मेरी जन्म-भूमि है और पैगम्बर साहब का हुक्म है कि तुम्हारी जन्म-भूमि का प्रेम तुम्हारे धर्म-प्रेम में शामिल होगा ।. https://www.amazon.in/-/hi/Ramdhari-Singh-Dinkar/dp/9388211979
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Hindi Books Vikram Sarabhai Library Rack 46-B / Slot 2580 (3rd Floor, East Wing) Non-fiction Hindi H 320.954 S4B4 (Browse shelf(Opens below)) Available 207701

राष्ट्रीय एकता का प्रश्न स्वतंत्रता के बाद भी हमारे सामने ज्वलन्त रूप में था और आज भी वैसा ही बना हुआ है। ऐसे में राष्ट्रकवि दिनकर की यह पुस्तक हमारे लिए एक मार्गदशर्क की भूमिका निभा सकती है। गौरतलब है कि वर्ण, धर्म, रंगभेद, वर्ग आदि के आधार पर युगों से चली आ रही जो असमानता और बिखराव आज पूँजीवादी युग में अपने विभिन्न रूपों में विभिन्न स्तरों पर व्याप्त है, वह किसी भी राष्ट्र, समाज, उसकी संस्कृति के लिए खतरनाक है। तब तो और, जब सत्ता और राजनीति के बीच फासिज्म नवराष्ट्रवाद के नाम पर एक वाचाल और निरंकुश भूमिका में आ गया हो। ऐसे में दिनकर की यह चिन्ता कितनी वाजिब है कि 'एकता का सारा काम केवल राजनीति के मंच से किया जाए, यह यथेष्ट नहीं है। हमें कॉलेजों, स्कूलों और पुस्तकालयों में ऐसा साहित्य भी पहुँचाना चाहिए, जिसमें एकता के प्रश्न पर गहराई से विचार किया गया हो।' 'भारतीय एकता' पुस्तक में जो दो निबन्ध–‘उत्तर-दक्षिण की एकता’ और ‘हिन्दू मुस्लिम एकता’ संगृहीत हैं, जो राष्ट्रकवि दिनकर के चार भाषणों से तैयार हुए हैं। इनमें इतिहास के प्रमाण कम, साहित्य के प्रमाण अधिक दिए गए हैं। मगर साहित्य के प्रमाण भी अन्ततोगत्वा इतिहास के ही प्रमाण होते हैं, क्योंकि इतिहास का सार साहित्य में, आप-से-आप, पहुँच जाता है। दिनकर की इस पुस्तक में मूल चिन्तन यह है कि ‘जो लोग वैविध्य को अनेकता मानते हैं और वैविध्य को मिटाकर एकता लाना चाहते हैं, वे कभी भी सफल नहीं होंगे। विविधता भारत का स्वभाव है। उसकी रक्षा करते हुए जो एकता हम ला सकेंगे, वही टिकाऊ होगी और वही काम्य भी है।’ भारत को खुसरो ने पृथ्वी का स्वर्ग माना है...। भारत के सामने खुसरो ने बसरा, तुर्की, रूस, चीन, खुरासान, समरकंद, मिस्र और कन्धार--सबको तुच्छ बताया है । फिर खुसरो ने यह भी लिखा है कि कोई मुझसे पूछ सकता है कि तू मुसलमान होकर हिन्दुस्तान की बड़ाई क्यों करता है । मेरा जवाब यह होगा कि इसलिए कि हिंदुस्तान मेरी जन्म-भूमि है और पैगम्बर साहब का हुक्म है कि तुम्हारी जन्म-भूमि का प्रेम तुम्हारे धर्म-प्रेम में शामिल होगा ।.


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