Kalaa ki zaroorat (कला की जरुरत)
Material type:
- 9788171780938
- H 891.431 F4K2
Item type | Current library | Item location | Collection | Shelving location | Call number | Status | Date due | Barcode | |
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Hindi Books | Vikram Sarabhai Library | Rack 44-A / Slot 2473 (3rd Floor, East Wing) | Non-fiction | Hindi | H 891.431 F4K2 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 207461 |
ऑस्ट्रिया के विश्वविख्यात कवि और आलोचक अंर्स्ट फ़िशर की पुस्तक ‘कला की ज़रूरत’ कला के इतिहास और दर्शन पर मार्क्सवादी दृष्टि से विचार करनेवाली अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृति है। कला आदिम युग से आज तक मनुष्यों की ज़रूरत रही है और भविष्य में भी रहेगी, पर उन्हें कला की ज़रूरत क्यों होती है? आख़िर वह कौन-सी बात है जो मनुष्यों को साहित्य, संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला आदि के विभिन्न रूपों में जीवन की पुनर्रचना के लिए प्रेरित करती है? इस आधारभूत प्रश्न पर विचार करने के लिए लेखक ने आदिम युग से आज तक के और भविष्य के भी मानव-विकास को ध्यान में रखकर सबसे पहले तो कला के काम और उसके विभिन्न उद्गमों पर विचार किया है और फिर विस्तार से इस बात पर प्रकाश डाला है कि मौजूदा पूँजीवादी तथा समाजवादी व्यवस्थाओं में कला की विभिन्न स्थितियाँ किस प्रकार की हैं। इस विचार-क्रम में वे तमाम प्रश्न आ जाते हैं जो आज सम्पूर्ण विश्व में कला-सम्बन्धी बहसों के केन्द्र में हैं। आज का सबसे विवादास्पद प्रश्न कला की अन्तर्वस्तु और उसके रूप के पारस्परिक सम्बन्धों का है। अंर्स्ट फ़िशर ने इन दोनों के द्वन्द्वात्मक सम्बन्ध को मार्क्सवादी दृष्टि से सही ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझने-समझाने का एक बेहद ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। आज भारतीय साहित्य के अन्तर्गत जो जीवंत बहसें चल रही हैं, उनकी सार्थकता को समझने तथा उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ाने में फ़िशर द्वारा प्रस्तुत विवेचन अत्यधिक सहायक सिद्ध हो सकता है।
साहित्य और कला के प्रत्येक अध्येता के लिए वस्तुतः यह एक अनिवार्य पुस्तक है।
https://rajkamalprakashan.com/kalaa-ki-zaroorat.html
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