Aawan
Material type:
- 9788171381364
- H 891.43 M8A2
Item type | Current library | Item location | Collection | Shelving location | Call number | Status | Date due | Barcode | |
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Hindi Books | Vikram Sarabhai Library | Rack 47-A / Slot 2613 (3rd Floor, East Wing) | Fiction | Hindi | H 891.43 M8A2 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 199983 |
संगठन अजय शक्ति है। संगठन हस्तक्षेप है। संगठन प्रतिवाद है। संगठन परिवर्तन है। क्रांति है। किंतु यदि वही संगठन शक्ति सत्ताकांक्षियों की लोलुपताओं के समीकरणों की कठपुतली बन जाएं तो दोष उस शक्ति की अंधनिष्ठा का है या सवारी कर रहे उन दुरुपयोगी हाथों का जो संगठन शक्ति सपनों के बाजार में बरगलाए-भरमाए अपने वोटों की रोटी सेंक रहे ? ये खतरनाक कीट बालियों को नहीं कुतर रहे, फसल अंकुआने से पूर्व जमीन में चंपे बीजों को ही खोखला किए दे रहे हैं। पसीने की बूदों में अपना खून उड़ेल रहे भोले-भाले श्रमिकों को, हितैषी की आड़ में छिपे इस छदम कीटों से चेतने-चेताने और सर्वप्रथम उन्हीं से संघर्ष करने की जरूरत नहीं ?
क्या हुआ उन अनवरत मुठभेड़ों में की लाल तारीखों में अभावग्रस्त, दलित, शोषित श्रमिकों की उपासी आतों की चीखती मरोड़ों की पीड़ा खदक रही थी ? हाशिए पर किए जा सकते हैं वे प्रश्न जिन्होंने कभी परचम लहराया था कि वह समाज की कुरूपतम विसंगति आर्थिक वैषम्य को खदेड़, समता के नए प्रतिमान कायम करेंगे ? प्रतिवाद में तनी आकाश भेदती मुट्ठियों से वर्गहीन समाज रचे-गढ़ेंगे, जहाँ मनुष्य मनुष्य होगा, पूंजीपति या निर्धन नहीं ! पकाएंगे अपने समय के आवां को अपने हाड़-मांस के अभीष्ट ईधन से ताकि आवां नष्ट न होने पाए !
विरासत भेड़िए की शक्ल क्यों पहन बैठी ? ट्रेड यूनियन जो कभी व्यवस्था से लड़ने के लिए बनी थी, आजादी के पचास वर्षोपरांत आज क्या वर्तमान विकृत, भ्रष्ट स्वरूप धारण करके स्वयं एक समांतर व्यवस्था नहीं बन गई ?
बीसवीं सदी के अंतिम प्रहर में एक मजदूर की बेटी के मोहभंग, पलायन और वापसी के माध्यम उपभोक्तावादी वर्तमान समाज को कई स्तरों पर अनुसंधानित करता, निर्ममता से उधेड़ता, तहें खोलता, चित्रा मुदगल का सुविचारित उपन्यास आवां’ अपनी तरल, गहरी संवेदनात्मक पकड़ और भेदी पड़ताल के आत्मलोचन के कटघरे में ले, जिस विवेक की मांग करता है-वह चुनौती झेलता क्या आज की अनिवार्यता नहीं?
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