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Matsyagandha

By: Publication details: 2012 Vani Prakashan New DelhiDescription: 160 pISBN:
  • 9789350007792
Subject(s): DDC classification:
  • H 891.43 K6M2
Summary: सत्यवती के मुँह से जैसे अनायास ही निकल गया, ''मैं निषाद-कन्या ही हूँ तपस्वी ! मत्स्यगन्धा हूँ मैं । मेरे शरीर से मत्स्य की गन्ध आती है ।" तपस्वी खुल कर हँस पड़ा और उसने जैसे स्वत:चालित ढंग से सत्यवती की बाँह पकड़ कर उसे उठाया, "मछलियों के बीच रह कर, मत्स्यगन्धा हो गई हो पर हो तुम काम-ध्वज की मीन ! मेरे साथ आओ। इस कमल-वन में विहार करो और तुम पद्म-गन्धा हो जाओगी।" दोनों द्वीप पर आये और बिना किसी योजना के अनायास ही एक-दूसरे की इच्छाओं को समझते चले गये/ तपस्वी इस समय तनिक भी आत्मलीन नहीं था । उसका रोम-रोम सत्यवती की ओर उन्मुख ही नहीं था, लोलुप याचक के समान एकाग्र हुआ उसकी ओर निहार रहा था । सत्यवती को लग रहा था, जैसे वह मत्स्यगन्धा नहीं, मत्स्य-कन्या है । यह सरोवर ही उसका आवास है । चारों ओर खिले कमल उसके सहचर हैं । पृष्ठ संख्या 21 से " सत्यवती को विश्वास नहीं हुआ था । पिता के दूसरे विवाह से देवव्रत को ऐसा कौन-सा लाभ होने जा रहा था, जिसके लिए देवव्रत ने आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा कर ली थी ? यह प्रतिज्ञा पिता को प्रसन्न करने के लिए ही तो की थी न । पर, पिता को प्रसन्न करके क्या मिलेगा देवव्रत को- राज्य ही तो ? पर वही राज्य त्यागने की प्रतिज्ञा का ली है उन्होंने । केवल राज्य ही नहीं- स्त्री-सुख भी । क्यों की यह प्रतिज्ञा ? इससे देवव्रत को कौन-सा सुख मिलेगा ?"
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Hindi Books Vikram Sarabhai Library Rack 47-A / Slot 2612 (3rd Floor, East Wing) Fiction Hindi H 891.43 K6M2 (Browse shelf(Opens below)) Available 179489

सत्यवती के मुँह से जैसे अनायास ही निकल गया, ''मैं निषाद-कन्या ही हूँ तपस्वी ! मत्स्यगन्धा हूँ मैं । मेरे शरीर से मत्स्य की गन्ध आती है ।" तपस्वी खुल कर हँस पड़ा और उसने जैसे स्वत:चालित ढंग से सत्यवती की बाँह पकड़ कर उसे उठाया, "मछलियों के बीच रह कर, मत्स्यगन्धा हो गई हो पर हो तुम काम-ध्वज की मीन ! मेरे साथ आओ। इस कमल-वन में विहार करो और तुम पद्म-गन्धा हो जाओगी।" दोनों द्वीप पर आये और बिना किसी योजना के अनायास ही एक-दूसरे की इच्छाओं को समझते चले गये/ तपस्वी इस समय तनिक भी आत्मलीन नहीं था । उसका रोम-रोम सत्यवती की ओर उन्मुख ही नहीं था, लोलुप याचक के समान एकाग्र हुआ उसकी ओर निहार रहा था । सत्यवती को लग रहा था, जैसे वह मत्स्यगन्धा नहीं, मत्स्य-कन्या है । यह सरोवर ही उसका आवास है । चारों ओर खिले कमल उसके सहचर हैं । पृष्ठ संख्या 21 से " सत्यवती को विश्वास नहीं हुआ था । पिता के दूसरे विवाह से देवव्रत को ऐसा कौन-सा लाभ होने जा रहा था, जिसके लिए देवव्रत ने आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा कर ली थी ? यह प्रतिज्ञा पिता को प्रसन्न करने के लिए ही तो की थी न । पर, पिता को प्रसन्न करके क्या मिलेगा देवव्रत को- राज्य ही तो ? पर वही राज्य त्यागने की प्रतिज्ञा का ली है उन्होंने । केवल राज्य ही नहीं- स्त्री-सुख भी । क्यों की यह प्रतिज्ञा ? इससे देवव्रत को कौन-सा सुख मिलेगा ?"

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