Jitni mitti utna sona (जितनी मिट्टी उतना सोना)
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Item type | Current library | Item location | Collection | Shelving location | Call number | Status | Notes | Date due | Barcode |
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Hindi Books | Vikram Sarabhai Library | Rack 47-A / Slot 2606 (3rd Floor, East Wing) | Non-fiction | Hindi | H 891.43 P2J4 (Browse shelf(Opens below)) | Available | VSL New Arrival Display (December 09-15, 2024) Available for issue from 16th December, 2024 | 207556 |
कुमाऊँ, उत्तराखंड के सुदूर हिमालयी इलाक़े में भारत-तिब्बत सीमा से लगी व्यांस, दारमा और चौंदास घाटियों में निवास करने वाले लोग सदियों से तिब्बत के साथ व्यापार करते आए हैं। अपने आप को रं कहने वाले ये जन अद्वितीय सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं से लैस एक अनूठी सभ्यता के ध्वजवाहक हैं।
यह यात्रावृत्त इन्हीं घाटियों में की गई अनेक लंबी शोध-यात्राओं का परिणाम है। यह आपका परिचय संसार के एक ऐसे रहस्यमय हिस्से से करवाएगा जिसके बारे में बहुत कम प्रामाणिक कार्य हुआ है।
इस किताब में आपको बेहद मुश्किल परिस्थितियों में हिमालय की गोद में निवास करने वाले रं समाज की सांस्कृतिक संपन्नता के दर्शन तो होंगे ही, आप उस अजेय जिजीविषा और अतिमानवीय साहस से भी रू-ब-रू होंगे जिसके बिना इन दुर्गम घाटियों में जीने की कल्पना तक नहीं की जा सकती।
मानवशास्त्रीय महत्त्व के विवरणों से भरपूर इस यात्रावृत्त में कथा, गल्प, कविता, लोक साहित्य, और स्मृति के ताने-बाने से एक तिलिस्म रचा गया है जिसमें बुज़ुर्गों के सुनाए क़िस्सों की परिचित ऊष्मा भी है और अजनाने भूगोल में यात्रा करने का रोमांच भी।
https://www.amazon.in/-/hi/Ashok-Pande/dp/9392820216
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