Soje vatan

By: PremchandPublication details: New Delhi Vani Prakashan 2012Description: 71 pISBN: 9788188473472Subject(s): Hindi literature | Short stories | Hindi - Short storiesDDC classification: H 891.43 Summary: दर्द की एक चीख़ की तरह ये कहानियाँ जब एक छोटे-से किताबचे की शक्ल में आज से बावन बरस पहले निकली थीं, वह ज़माना और था। आज़ादी की बात भी हाकिम का मुँह देखकर कहने का उन दिनों रिवाज़ था। कुछ लोग थे जो इस रिवाज़ को नहीं मानते थे। मुंशी प्रेमचंद भी उन्हीं सरफिरों में से एक थे। लिहाज़ा सरकारी नौकरी करते हुए मुंशीजी ने ये कहानियाँ लिखीं, जिसमें मुंशीजी की सबसे पहली छोटी कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न’ भी शामिल है। नवाब राय के नाम से। और खुफ़िया पुलिस ने सुराग पा लिया कि यह नवाब राय कौन हैं। हमीरपुर के कलक्टर ने फ़ौरन मुंशीजी को तलब किया और मुंशीजी बैलगाड़ी पर सवार होकर रातों रात कुल पहाड़ पहुंचे जो कि हमीरपुर की एक तहसील थी और जहाँ उन दिनों कलक्टर साहब का क़याम था। सरकारी छानबीन पक्की थी और अपना जुर्म इक़बाल करने के अलावा मुंशीजी के लिए दूसरा चारा न था। बहुत-बहुत गरजा बमका कलक्टर—ख़ैर मनाओ कि अंग्रेजी अमलदारी में हो, सल्तनत मुग़लिया का ज़माना नहीं है, वर्ना तुम्हारे हाथ काट लिये जाते! तुम बग़ावत फैला रहे हो!... मुंशीजी अपनी रोज़ी की ख़ैर मनाते खड़े रहे। हुक्म हुआ कि इसकी कापियाँ मँगाओ। कापियाँ आयीं और आग की नज़र कर दी गयीं। लेकिन मुंशीजी के इरादे को इतनी-सी भी आँच नहीं लगी। यह नाम न सही। हाँ, दुख ज़रूर होता है, बड़ी-बड़ी मेहनतों से आठ-दस साल सेया-पोसा था इस नाम को। लेकिन ख़ैर, शायद यहीं तक साथ था इस नाम का। और तब प्रेमचंद का जन्म हुआ। जैसा कि आप देखेंगे, इन पाँच कहानियाँ में से चार हिन्दी के लिए बिल्कुल नयी हैं, और पाँचवीं ‘यह मेरी मातृभूमि है’ भी कुछ बदले हुए चोले में पेश की जा रही है जो असल के ज़्यादा क़रीब है। सारी कहानियाँ १९०९ के मूल उर्दू संस्करण से मिलाकर दी जा रही हैं। (http://pustak.org/bs/home.php?bookid=8640)
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Hindi Books Vikram Sarabhai Library
Rack 47-A / Slot 2615 (3rd Floor, East Wing) Fiction Hindi H 891.43 P7S6 (Browse shelf(Opens below)) Available 179696

दर्द की एक चीख़ की तरह ये कहानियाँ जब एक छोटे-से किताबचे की शक्ल में आज से बावन बरस पहले निकली थीं, वह ज़माना और था। आज़ादी की बात भी हाकिम का मुँह देखकर कहने का उन दिनों रिवाज़ था।

कुछ लोग थे जो इस रिवाज़ को नहीं मानते थे। मुंशी प्रेमचंद भी उन्हीं सरफिरों में से एक थे।

लिहाज़ा सरकारी नौकरी करते हुए मुंशीजी ने ये कहानियाँ लिखीं, जिसमें मुंशीजी की सबसे पहली छोटी कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न’ भी शामिल है। नवाब राय के नाम से। और खुफ़िया पुलिस ने सुराग पा लिया कि यह नवाब राय कौन हैं। हमीरपुर के कलक्टर ने फ़ौरन मुंशीजी को तलब किया और मुंशीजी बैलगाड़ी पर सवार होकर रातों रात कुल पहाड़ पहुंचे जो कि हमीरपुर की एक तहसील थी और जहाँ उन दिनों कलक्टर साहब का क़याम था।

सरकारी छानबीन पक्की थी और अपना जुर्म इक़बाल करने के अलावा मुंशीजी के लिए दूसरा चारा न था। बहुत-बहुत गरजा बमका कलक्टर—ख़ैर मनाओ कि अंग्रेजी अमलदारी में हो, सल्तनत मुग़लिया का ज़माना नहीं है, वर्ना तुम्हारे हाथ काट लिये जाते! तुम बग़ावत फैला रहे हो!...

मुंशीजी अपनी रोज़ी की ख़ैर मनाते खड़े रहे। हुक्म हुआ कि इसकी कापियाँ मँगाओ। कापियाँ आयीं और आग की नज़र कर दी गयीं।

लेकिन मुंशीजी के इरादे को इतनी-सी भी आँच नहीं लगी। यह नाम न सही। हाँ, दुख ज़रूर होता है, बड़ी-बड़ी मेहनतों से आठ-दस साल सेया-पोसा था इस नाम को। लेकिन ख़ैर, शायद यहीं तक साथ था इस नाम का।
और तब प्रेमचंद का जन्म हुआ।

जैसा कि आप देखेंगे, इन पाँच कहानियाँ में से चार हिन्दी के लिए बिल्कुल नयी हैं, और पाँचवीं ‘यह मेरी मातृभूमि है’ भी कुछ बदले हुए चोले में पेश की जा रही है जो असल के ज़्यादा क़रीब है।
सारी कहानियाँ १९०९ के मूल उर्दू संस्करण से मिलाकर दी जा रही हैं।
(http://pustak.org/bs/home.php?bookid=8640)

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